Pagli Arzoo | Nasira Sharma

पगली आरज़ू | नासिरा शर्मा

कहा था मैंने तुमसे
उस गुलाबी जाड़े की शुरुआत में
उड़ना चाहती हूँ मैं तुम्हारे साथ
खुले आसमान में
चिड़ियाँ उड़ती हैं जैसे अपने जोड़ों के संग
नापतीं हैं आसमान की लम्बाई और चौड़ाई
नज़ारा करती हैं धरती का, झांकती हैं घरों में
पार करती हैं पहाड़, जंगल और नदियाँ
फिर उतरती हैं ज़मीन पर, चुगती हैं दाना
सुस्ताती किसी पेड़ की शाख़ पर
अलापतीं हैं कोई गीत  प्रेम का
जब उमड़ता है प्यार तो गुदगुदाती हैं
अपनी चोंच से एक दूसरे को
उसी तरह मैं प्यार करना चाहती हूँ तुम्हें
लब से लब मिला कर, हथेली पर हथेली रखकर
जैसे वह सटकर बैठते हैं अपने घोंसले में
वैसे ही रात को सोना चाहती हूँ तुम से लिपट कर
आँखों में नीले आसमान के सपने भर
इस खुरदुरी दुनिया को सलामत बनाने के लिए।

मैं उड़ना चाहती हूँ तुम्हारे संग ऊँचाइयों पर
जहाँ मुलाक़ात कर सकूँ सूरज से
उस डूबते सूरज को पंखों में छुपा लाऊँ
लौटते हुए उगे चाँद के चेहरे को चूम कर
चुग लाऊँ कुछ तारे चोरी-चोरी
फिर उन्हें सजा दूँ धरती के अंधेरे कोनों में।  
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