Pita Ka Hatyara | Madan Kashyap
पिता का हत्यारा | मदन कश्यप
उसके हाथ में एक फूल होता है
जो मुझे चाकू की तरह दिखता है
सच तो यह है कि वह चाकू ही होता है
जो कैमरों में फूल जैसा दिखता है
और उन तमाम लोगों को भी फूल ही दिखता है
जो अपनी आँखों से नहीं देखते
वह मेरे पिता का हत्यारा है
रोज़ ही मिलता है
टेलेविज़न चैनलों और अख़बारों में ही नहीं
कभी-कभार
सड़कों पर
आमने-सामने भी
मैं इतना डर जाता हूँ
कि डरा हुआ नहीं होने का नाटक भी नहीं कर पाता
चौदह वर्ष का था जब पिता की हत्या हुई थी
पिछले तीन वर्षों से बस यही सीख रहा हूँ
कि जीने के लिए कितना ज़रूरी है मरना
पिता का शव अस्पताल से घर आया था
तब मुझे ठीक से पता भी नहीं था कि उनकी हत्या हुई है।
हमें बताया गया था वे एक पार्टी में गये थे
और अचानक उनके ह्रदय की गति रुक गयी
तीसरे दिन हत्यारे के आ धमकने के बाद ही पता चला
कि उनकी हत्या हुई थी
उसके आने से पहले चेतावनियाँ आने लगी थीं
धमकियाँ पहुँचने लगी थीं
यह प्रलोभन भी कि मैं जी सकता हूँ
जैसे पिता भी चाहते तो जी सकते थे
बिल्कुल मेरे घर वह अकेले ही आया
सफेद कपड़ों में निहत्था एक तन्दुरुस्त आदमी
उसने अंगरक्षकों को कुछ पीछे और
अपने समर्थकों को कुछ और अधिक पीछे रोक दिया था
मेरे माथे पर हाथ फेरा
लगा जैसे चमड़े सहित मेरे बाल नुच जायेंगे
सिसकते हुए मैं अपने गालों पर लुढ़क रहे
आँसुओं को छूकर आश्वस्त हुआ
वह ख़ून की धार नहीं थी
वह बिना किसी आग्रह के बैठ गया
और हमारे ही घर में हमें बैठने का इशारा किया
फिर धीरे-धीरे बोलने लगा
मानो मुझसे या मेरी माँ से नहीं
किसी अदृश्य से बातें कर रहा हो
करनी पड़ती है
हत्या भी करनी पड़ती है।
तुम बच्चे हो और तुम्हारी माँ एक विधवा
धीरे-धीरे सब समझ जाओगे
मैं समझता हूँ तुम अभी जीना चाहते हो
और मैं भी इस मामले को यहीं ख़त्म कर देना चाहता हूँ
यह इकलौती नहीं है
और भी हत्याएँ हैं और भी हत्याएँ होनी हैं
तुम्हें साफ-साफ बता दूँ
कि हत्या मेरी मजबूरी या ज़रूरत भर नहीं है।
वे और हैं जो राजनीति के लिए हत्याएँ करते हैं
मैं हत्या के लिए राजनीति करता हूँ
हत्या को संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा बनाकर
तमाम विवादों - बहसों को ख़त्म कर दूँगा एक साथ
और जाते-जाते तुम्हें साफ-साफ बता दूँ
तुम्हारे पिता की हत्या ही हुई थी
क्योंकि वह मुझे हत्यारा सिद्ध करने की ज़िद नहीं छोड़ रहे थे
अब तुम ऐसी कोई ज़िद मत पालना
वह चला गया तब कैमरेवाले आये
मैंने साफ-साफ कहा मेरे पिता की हत्या नहीं हुई थी
वह स्वाभाविक मौत थी ज़्यादा से ज़्यादा दुर्घटना कह सकते हैं
फिर मैंने स्कूल में अपने साथियों को ही नहीं
सड़क के राहगीरों और पड़ोसियों को ही नहीं
घर में अपने दादाजी को भी बताया
मेरे पिता की हत्या नहीं हुई थी
बस एक वही थे जो मान नहीं रहे थे
और एक दिन तो मैं सपने में चिल्ला उठा
नहीं-नहीं मेरे पिता की हत्या नहीं हुई थी!