प्रार्थना | रचित

ईश्वर,
ध्यान देना…

जब खड़ा होना पड़े मुझे
तो अपने अस्तित्व से ज़्यादा जगह न घेरूँ।

मैं ऋग्वेद के चरवाहों की करुणा के साथ कहता हूँ—
मुझे इस अनंत ब्रह्मांड में

मेरे पेट से बड़ा खेत मत देना,
हल के भार से अधिक शक्ति,

बैल के आनंद से अधिक श्रम मत देना।
मैं तोलस्तोय के किसान से सीख लेकर कहता हूँ :

मुझे मत देना उतनी ज़मीन
जो मेरे रोज़ाना के इस्तेमाल से ज़्यादा हो,

हद से हद एक चारपाई जितनी जगह
जिसके पास में एक मेज़-कुर्सी आ जाए।

मुझे मेरे ज्ञान से ज़्यादा शब्द,
सत्य से ज़्यादा तर्क मत देना।

सबसे बड़ी बात
मुझे सत्य के सत्य से भी अवगत करवाना।

मुझे मत देना वह
जिसके लिए कोई और कर रहा हो प्रार्थना।

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