Preeti-Bhaint | Shrikant Verma
प्रीति-भेंट | श्रीकांत वर्मा
इतने दिनों के बाद अकस्मात मिले तो आँसुओं ने उसके उसे, मेरे मुझे
भरमा दिया,
आँसू जब थमे तो मैं कुछ और था, वह कुछ और-
वह मेरी आँखों में, मैं उसकी आँखों में
ढूँढ़ रहा था शंका, अविश्वास और याचना से
ठौर!