Restaurant Mein Intezar | Rajesh Joshi

रेस्त्राँ में इंतज़ार | राजेश जोशी

वो जिससे मिलने आई है अभी तक नहीं आया है
वो बार बार अपना पर्स खोलती है और बंद करती है
घड़ी देखती है और देखती है
कि घड़ी चल रही है या नहीं
एक अदृश्य दीवार उठ रही है उसके आसपास
ऊब और बेचैनी के इस अदृश्य घेरे में वह अकेली है
एकदम अकेली
वेटर इस दीवार के बाहर खड़ा है

वेटर उसके सामने पहले ही एक गिलास पानी रख चुका है
धीरे धीरे दो घूँट पानी पीती है
और ठंडे गिलास को अपनी दुखती हुई आँखों पर लगाती है
वो रेस्त्राँ के बाहर लगे पेड़ों के पार
देखने की कोशिश करती है
पेड़ जैसे पारदर्शी हों !
अदृश्य दीवार के बाहर खड़ा वेटर असमंजस में है
आर्डर लेने जाए या नहीं

जीवन की न जाने कितनी आपाधापी के बीच से
चुरा कर लाई थी वो इस समय को
जो धीरे धीरे बीत रहा है

उसने अपनी कुर्सी को घुमा लिया है
प्रवेश द्वार की ओर पीठ करके बैठ गई है
जैसे उम्मीद की ओर

वो सुनती है कहीं अपने अंदर बहुत धीमी
किसी चीज़ के दरकने की आवाज़ !

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