Samaj Unhe Mardana Kehta Hai | Ekta Verma
समाज उन्हें मर्दाना कहता है | एकता वर्मा
जो राजाओं के युद्ध से लौटने का इन्तिज़ार नहीं करती
उनके पीछे जौहर नहीं करती
बल्कि निकलती हैं संतान को पीठ पर बाँध कर
तलवार खींच कर रणभूमि में
समाज उन्हें मर्दाना कहता है
जो थाली में छोड़ी गई जूठन से संतोष नहीं
धरती जो अपनी हथेलियों से दरेर कर तोड़ देती हैं भूख के जबड़े
जो खाती हैं घर के मर्दों से देवढी ख़ुराक
और पीती हैं लोटा भर पानी
समाज उन्हें मर्दाना कहता है
जिनके व्यक्तित्व में स्त्रीयोचित व्यवहार की बड़ी कमी होती है
जिनकी चाल में सिखाई गई सौम्यता नहीं है स्त्रीत्व नहीं
बल्कि गुरुत्व के अनुकूल जो धमक कर चलती हैं
टाँगें खोल कर पसर कर बैठती हैं
जिनके ख़ून की गरमी सारे षड्यंत्रों के बावजूद शेष है
समाज उन्हें मर्दाना कहता है
जो गरज सकती हैं क्रोध में
बरस सकती हैं आशंकाओं से निश्चित
जो अपने जंघाओं पर ताब देकर खुलेआम चुनौती दे सकती हैं
भरी सभा मूँछें ऐंठ सकती हैं
मूँछ दार बेटियाँ जन सकती हैं
समाज उन्हें मर्दाना ही कहता है
वे मर्दानगी के खूँटे में बंधी सत्ता को उसके नुकीले सींघों के पकड़ कर
धोती हैं घर की इकलौती कमाऊ लड़कियों से लेकर
प्रदेश की मुख्यमंत्री अथवा देश की प्रधानमन्त्री तक वे
सभी औरतें जो नायिकाओं की तरह सापेक्षताओं में नहीं
अपितु एक नायक की भाँति जीती हैं केन्द्रीय भूमिकाओं में
यह समाज यह देश मर्दाना ही कहता है