Sankraman | Satyam Tiwari
रेखा के उस पार सब संदिग्ध थे
इस तरह वह लंपट था और मुँहफट
सूचियों से नदारद
चौकसी से अंजान
वह जिस देवता को फूल चढ़ाता
उसकी कृपा चट्टानी पत्थरों के बरक्स ढुलकती
उसकी प्रार्थना अँधेरी काली सड़कों-सी अंतहीन
जहाँ नीचे वाला ही ऊपर वाला हो
वहाँ फाँसी के फंदे पर
गिलोटिन के तख्ते पर
उन्मादियों के झंडे पर
वह किसके भरोसे चढ़ा?
अगर उसे अपने ही गुनाहों की सजा मिली
तो उसका होना इतना भी बुरा नहीं होता
वह जो समय रहते कालातीत हो गया
उसके लिए मैं ठीक इस जगह पर
एक पंक्ति भी नहीं सोच सका
यह कितना गलत होता
अगर उसके बारे में मैं गलत होता
यह कितना गलत होता
अगर इस बारे में मैं सही होता
बात गुलमोहर और अनजान गलियों की नहीं है
है तो यह जीवन और मृत्यु में
श्रेष्ठताबोध की भी नहीं
लेकिन जब लोग कहते हैं कि उन्हें जीना पड़ा
तो लगता है कि मरने को मिला होता तो मर गए होते!