Sapne Nahin Hain To | Nandkishore Acharya
सपने नहीं हैं तो | नंदकिशोर आचार्य
नहीं देखे
किसी और के सपने मेरे सिवा
फिर भी वह नहीं था मैं
जिस के सपने देखती थीं तुम
क्यों कि मेरे भी तो थे सपने कुछ
नहीं थे जो सपनों में तुम्हारे
जैसे तुम थीं सपनों में मेरे
पर नहीं थे सपने तुम्हारे
एक-एक कर निकालती गयीं
वे सपने मेरी नींद में से तुम
और बनाती गयीं जागते में मुझ को
अपने सपने-सा.....
और अब हुआ यह है :
मैं हर वक्त जगा-सा हूँ ।
फिर भी झल्लाती हो तुम
तुम्हारा सपना तक
क्यों नहीं देखता मैं
भूलती हुई
सपने नहीं आते हैं
नींद के बिना।
झल्लाता हूँ मैं भी
जानता हुआ
मैंने भी किया है वही
तुम्हारे भी सपनों के साथ।
पर सुनो!
सपने नहीं हैं तो
झल्लाहट क्यों है?