Sitaron Se Ulajhta Ja Raha Hun | Firaq Gorakhpuri

सितारों से उलझता जा रहा हूँ | फ़िराक़ गोरखपुरी

सितारों से उलझता जा रहा हूँ
शब-ए-फ़ुरक़त बहुत घबरा रहा हूँ


यक़ीं ये है हक़ीक़त खुल रही है
गुमाँ ये है कि धोखे खा रहा हूँ

इन्ही में राज़ हैं गुल-बारियों के
मै जो चिंगारियाँ बरसा रहा हूँ 


तेरे पहलू में क्यों होता है महसूस
कि तुझसे दूर होता जा रहा हूँ

जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूँ

मोहब्बत अब मोहब्बत हो चली है
तुझे कुछ भूलता-सा जा रहा हूँ

अजल भी जिनको सुनकर झूमती है 
वो नग़्मे ज़िन्दगी के गा रहा हूँ 

ये सन्नाटा है मेरे पाँव की चाप
"फ़िराक़" अपनी कुछ आहट पा रहा हूँ


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