Suno Kabir | Nasira Sharma
सुनो कबीर ! | नासिरा शर्मा
सुनो कबीर,
चलो मेरे साथ
वहाँ जहाँ तुम्हारी प्रताड़ना के बावजूद
डूब रहे हैं दोनों पक्ष
ज़रूरत है उन्हें तुम्हारी फटकार की
वह नहीं सुन रहे हैं हमारी बातें
हमारी चेतावनी, कर रहे हैं मनमानी
अंधविश्वास की पट्टी बंध चुकी है
उनकी रौशन आँखों पर और
आगे का रास्ता भूल , वह भटक रहे हैं
पीछे बहुत पीछे अतीत की ओर
तुम्हीं सिखा सकते हो,
उनकी चेतना को जगा सकते हो
ऐसा मेरा विश्वास है कबीर!
सब कुछ बदल डालना चाहतें हैं वह
हो रहा है विध्वंस
गिर रहा है मलबा , सोच और इमारतों का
ख़ुदा और ईश्वर दोनों ने छूट दे रखी है
वह थक चुके हैं और कर रहे हैं विश्राम
ऐसे में, तुम बहुत याद आते हो कबीर
किसी नए रूप में इन्हें जगाने
चले आओ कबीर।