Tumhare Bagair Ladna | Vihaag Vaibhav
तुम्हारे बग़ैर लड़ना | विभाग वैभव
तुम्हारे जाने के बाद
मैं राह के पत्थर जितना अकेला रहा
फिर एक दिन सिसकियों को एक खाली कैसेट में डालकर
किताबों के बीच छिपा दिया
बहुत से लोग थे जिन्हें फूलों की ज़रुरत थी
मैंने माली का काम किया
किसी कमज़ोर के खेत का पानी
किसी ने लाठी के दम पर काट लिया
दोस्तों को जुटाया
हड्डियों को चूम लेने वाली सर्दियों की रातों में
घुटने तक पानी मे खड़ा रहा
न्याय के लिए विवेक भर अड़ा रहा
(एक गेहूँ उगाने के लिए खोलने पड़ते हैं कितने मोर्चे
कितना आसान है
ख़ारिज कर देना एक वाक्य में पूरा का पूरा जीवन)
किसी की ख़ुशी में शामिल हुआ
तो भूल गया कि
समय का पत्थर बरसाती बिजलियों की तरह
सीने में चिटकता है इन दिनों
तुम्हारे जाने के बाद भी हिम्मत भर लड़ा
और थका तो सपने में जाकर रोया
पर मेरी तुम!
काश आज तुम मुझे सुन लेती
हत्यारों में किया गया हूँ शामिल
आतताइयों का दोस्त बताकर किया गया है अट्टहास
पीठ पर बढ़ते जाते हैं अभिव्यक्तियों के घाव
मैं वहाँ हूँ जहाँ से इंसान का दायाँ हाथ
अपने ही बाएँ हाथ को पहचानने से इनकार करता है।
काश आज तुम मुझे सुन लेतीं
काश मैं तुम्हें छू सकता
जैसे इस दुनिया से बचाती हुई
अपने सीने में मुझे छिपाती हई
तुम कह देतीं-
नहीं, तुम्हारी गर्दन तुम्हारी आवाज़ की क़ीमत नहीं चुकायेगी
तुम्हारा 'जन्म एक भयंकर हादसा' नहीं था।