Vah Mujhi Main Hai Bhay | Nandkishore Acharya

वह मुझी में है भय | नंदकिशोर आचार्य 

एक अनन्त शून्य ही हो
यदि तुम
तो मुझे भय क्यों है ?
कुछ है ही नहीं जब
जिस पर जा गिरूँ
चूर-चूर हो छितर जाऊँ
उड़ जायें मेरे परखच्चे
तब क्यों डरूँ?
नहीं, तुम नहीं
वह मुझी में है भय
मुझ को जो मार देता है।
और इसलिए वह रूप भी
जो तुम्हें आकार देता है।


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