Wahan Nahin Milungi Main | Renu Kashyap

वहाँ नहीं मिलूँगी मैं | रेणु कश्यप

मैंने लिखा एक-एक करके 
हर अहसास को काग़ज़ पर 
और सँभालकर रखा उसे फिर 
दरअस्ल, छुपाकर 
मैंने खटखटाया एक दरवाज़ा 
और भाग गई फिर 
डर जितने डर 
उतने निडर नहीं हम 
छुपते-छुपाते जब आख़िर निकलो जंगल से बाहर 
जंगल रह जाता है साथ ही 
आसमान से झूठ बोलो या सच 
समझ जाना ही है उसे 
कि दोस्त होते ही हैं ऐसे। 
मेरे डरों से पार 
एक दुनिया है 
तुम वहीं ढूँढ़ रहे हो मुझे 
वहाँ नहीं मिलूँगी मैं। 
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