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Hum Laut Jayenge | Shashiprabha Tiwari

हम लौट जाएंगे | शशिप्रभा तिवारीकितने रात जागकर हमने तुमने मिलकर  सपना बुना था कभी इस नीम की डाल पर बैठ कभी उस मंदिर कंगूरे पर बैठ कभी तालाब के किनारे बैठ कभी कुएं के ज...

Pehra | Archana Verma

पहरा | अर्चना वर्मा जहां आज बर्फ़ हैबहुत पहलेवहां एक नदी थीएक चेहरा है निर्विकारजमी हुई नदी.आंख, बर्फ़ में सुराख़द्वार के भीतरहै तो एक संसार मगरकैदहलचलों पर मुस्तैदमहज़...

Bahut Pehle Se | Firaq Gorakhpuri

बहुत पहले से | फ़िराक़ गोरखपुरीबहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैंतुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैंमिरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान ओ ईमाँ हैंनिगाहें मिलत...

Samay Nahin Lagta Hain | Ajay Jugran

समय नहीं लगता है | अजेय जुगरानआज के कल हो जाने मेंकल के कभी नहीं होने मेंसमय नहीं लगता है।अक्सर इस छोटे से जीवन मेंअवसर को पाकर खोने मेंसमय नहीं लगता है।अनुकूल की प्रत...

Hum Hain Tana Huma Hain Bana | Uday Prakash

हम हैं ताना, हम हैं बाना |  उदय प्रकाश हम हैं ताना, हम हैं बाना।हमीं चदरिया, हमीं जुलाहा, हमीं गजी, हम थाना॥ हम हैं ताना''॥नाद हमीं, अनुनाद हमीं, निःशब्द हमीं गंभीरा,अ...

Charitra | Tasleema Nasrin

चरित्र | तस्लीमा नसरीन तुम लड़की हो, यह अच्छी तरह याद रखना तुम जब घर की चौखट लाँघोगी लोग तुम्हें टेढ़ी नज़रों से देखेंगे तुम जब गली से होकर चलती रहोगी लोग तुम्हारा पीछ...

Padhna Mere Pair | Jyoti Pandey

पढ़ना मेरे पैर | ज्योति पांडेयमैं गई जबकि मुझे नहीं जाना था। बार-बार, कई बार गई। कई एक मुहानों तक न चाहते हुए भी… मेरे पैर मुझसे असहमत हैं, नाराज़ भी। कल्पनाओं की इतनी ...

Tinka Tinka Kaante Tode Sari Raat Kataai Ki | Gulzar

तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की | गुलज़ारतिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई कीक्यूँ इतनी लम्बी होती है चाँदनी रात जुदाई कीनींद में कोई अपने-आप से बातें करता...

Kare Jo Parvarish Vo Hi Khuda Hai | Ajay Agyat

करे जो परवरिश वो ही ख़ुदा है | अजय अज्ञातकरे जो परवरिश वो ही ख़ुदा है उसी का मर्तबा सब से बड़ा हैबुरे हालात में जो काम आएउसे पूजो वो सचमुच देवता हैधुआं फैला है हर सू न...

Rath Daudte Hain Rangeen Phoolon Ke

रथ दौड़ते हैं रंगीन फूलों के | केदारनाथ अग्रवाल  रंग नहींरथ दौड़ते हैं रंगीन फूलों केसांध्य गगन में।देखो-बस-देखो।रंग नहींध्वज फहरते हैं रंगीन स्वप्नों केसांध्य गगन में...

Jo Hawa Me Hai | Umashankar Tiwari

जो हवा में है | उमाशंकर तिवारीजो हवा में है,लहर में हैक्यों नहीं वह बात,मुझमें है?शाम कन्धों पर लिए अपनेज़िन्दगी के रू-ब-रू चलनारोशनी का हमसफ़र होनाउम्र की कन्दील का ज...

Maine Kaha Baarish | Shahanshah Alam

मैंने कहा बारिश | शहंशाह आलम मैंने कहा बारिशउसने कहा प्रेममैंने कहा प्रेमउसने कहा पेड़मैंने कहा पेड़उसने कहा चिड़ियाँमैंने कहा चिड़ियाँउसने कहा जलकुंडमैंने कहा जलकुंडउसने ...

Dukh | Achal Vajpeyi

दुख / अचल वाजपेयीउसे जब पहली बार देखालगा जैसेभोर की धूप का गुनगुना टुकड़ाकमरे में प्रवेश कर गया हैअंधेरे बंद कमरे का कोना-कोनाउजास से भर गया हैएक बच्चा हैजो किलकारियाँ...

Khali Ghar | Chandrakanta

खाली घर | चंद्रकांता सब कुछ वही थासांगोपांगघर ,कमरे,कमरे की नक्काशीदार छतनदी पर मल्लाहों की इसरार भरी पुकार  सडक पर हंगामों के बीच दौड़ते- भागते बेतरतीब हुजूम के हुजूम...

Naye Din Ke Saath | Kedarnath Singh

नए दिन के साथ | केदारनाथ सिंह नए दिन के साथएक पन्ना खुल गया कोराहमारे प्यार कासुबह,इस पर कहीं अपना नाम तो लिख दोबहुत से मनहूस पन्नों मेंइसे भी कहीं रख दूंगा।और जब-जबहव...

Registan Ki Raat Hai | Deepti Naval

रेगिस्तान की रात है / दीप्ति नवलरेगिस्तान की रात हैऔर आँधियाँ सीबनते जाते हैं निशांमिटते जाते हैं निशांदो अकेले से क़दमना कोई रहनुमांना कोई हमसफ़ररेत के सीने में दफ़्न...

Ped Aur Patte | Adarsh Kumar Mishra

पैड़ और पत्ते | आदर्श कुमार मिश्र पेड़ से पत्ते टूट रहे हैंपेड़ अकेला रहता है,उड़ - उड़कर पते दूर गए हैंपेड़ अकेला रहता है,कुछ पत्तों के नाम बड़े हैं, पहचान है छोटेकुछ प...

Main Isliye Likh Raha Hun | Achyutanand Mishra

मैं इसलिए लिख रहा हूं | अच्युतानंद मिश्रमैं इसलिए लिख रहा हूंकि मेरे हाथ काट दिए जाएंमैं इसलिए लिख रहा हूंकि मेरे हाथतुम्हारे हाथों से मिलकरउन हाथों को रोकेंजो इन्हें ...

Lok Malhar | Dr Sheoraj Singh 'Bechain'

लोक मल्हार | डॉ श्योराज सिंह 'बेचैन'सुन बहिना!मेरे जियरबा की बातउदासी मेरे मन बसी।सैंया तलाशें री बहना नौकरीदेवर स्वप्न में फिल्‍मी छोकरी।मेरी बहिना, ननदीतलाशे भरतार, ...

Khushi Kaisa Durbhagya | Manglesh Dabral

खुशी कैसा दुर्भाग्य | मगलेश डबराल जिसने कुछ रचा नहीं समाज मेंउसी का हो चला समाजवही है नियन्ता जो कहता है तोडँगा अभी और भी कुछजो है खूँखार हँसी है उसके पासजो नष्ट कर सक...

Chupchap Ullas | Bhawani Prasad Mishra

चुपचाप उल्लास | भवानीप्रसाद मिश्रहम रात देर तकबात करते रहेजैसे दोस्तबहुत दिनों के बादमिलने पर करते हैंऔर झरते हैंजैसे उनके आस पासउनके पुरानेगाँव के स्वरऔर स्पर्शऔर गंध...

Seene Me Kya Hai Tumhare | Akshay Upadhyay

सीने में क्या है तुम्हारे / अक्षय उपाध्यायकितने सूरज हैं तुम्हारे सीने मेंकितनी नदियाँ हैंकितने झरने हैंकितने पहाड़ हैं तुम्हारी देह मेंकितनी गुफ़ाएँ हैंकितने वृक्ष है...

Bhookh | Achyutanand Mishra

भूख / अच्युतानंद मिश्रमेरी माँ अभी मरी नहींउसकी सूखी झुलसी हुई छातीऔर अपनी फटी हुई जेबअक्सर मेरेसपनों में आती हैंमेरी नींद उचट जाती हैमैं सोचने लगता हूँमुझे किसका ख्या...

Khejadi Se Ugi Ho | Nandkishore Acharya

खेजड़ी-सी उगी हो | नंदकिशोर आचार्य खेजड़ी-सी उगी हो मुझ मेंहरियल खेजड़ी सी तुमसूने, रेतीले विस्तार में :तुम्हीं में से फूट आया हूँताज़ी, घनी पत्तियों-सा।कभी पतझड़ की ह...

Raat Yun Kehne Laga Mujhse Gagan Ka Chand | Ramdhari Singh 'Dinkar'

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद / रामधारी सिंह "दिनकर"रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,और फिर बेचैन ह...

Pita Ke Ghar Me | Rupam Mishra

पिता के घर में | रूपम मिश्रापिता क्या मैं तुम्हें याद हूँ!मुझे तो तुम याद रहते होक्योंकि ये हमेशा मुझे याद कराया गयाफासीवाद मुझे कभी किताब से नहीं समझना पड़ापिता के लि...

Paas | Ashok Vajpeyi

पास | अशोक वाजपेयी पत्थर के पास था वृक्षवृक्ष के पास थी झाड़ीझाड़ी के पास थी घासघास के पास थी धरतीधरती के पास थी ऊँची चट्टानचट्टान के पास था क़िले का बुर्जबुर्ज के पास...

Padhakku Ka Soojh | Ramdhari Singh 'Dinkar'

पढ़क्‍कू की सूझ | रामधारी सिंह "दिनकर"एक पढ़क्कू बड़े तेज थे, तर्कशास्त्र पढ़ते थे,जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नए बात गढ़ते थे।एक रोज़ वे पड़े फिक्र में समझ नहीं कुछ न पाए...

Dhahai | Prashant Purohit

ढहाई | प्रशांत पुरोहित उसने पहले मेरे घर के दरवाज़े को तोड़ा,छज्जे को पटका फिर,बालकनी को टहोका,अब दीवारों का नम्बर आया,तो उन्हें भी गिराया,मेरे छोटे मगर उत्तुंग घर की ...

Us Roz Bhi | Achal Vajpeyi

उस रोज़ भी |  अचल वाजपेयी उस रोज़ भी रोज़ की तरहलोग वह मिट्टी खोदते रहेजो प्रकृति से वंध्या थीउस आकाश की गरिमा परप्रार्थनाएँ गाते रहेजो जन्मजात बहरा थाउन लोगों को सौंप...

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