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Ek Aadmi Do Pahadon Ko Kuhniyon Se Thelta | Shamsher Bahadur Singh

एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता | शमशेर बहादुर सिंहएक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलतापूरब से पच्छिम को एक क़दम से नापताबढ़ रहा हैकितनी ऊँची घासें चाँद-तार...

Ma, Mozey Aur Khwab | Prashant Purohit

माँ, मोज़े, और ख़्वाब | प्रशांत पुरोहित माँ के हाथों से बुने मोज़े मैं अपने पाँवों में पहनता हूँ, सिर पे रखता हूँ। मेरे बचपन से कुछ बुनती आ रही है,सब उसी के ख़्वाब हैं...

Dukh | Madan Kashyap

दुख | मदन कश्यप दुख इतना था उसके जीवन में कि प्यार में भी दुख ही थाउसकी आँखों में झाँका दुख तालाब के जल की तरह ठहरा हुआ थाउसे बाँहों में कसापीठ पर दुख दागने के निशान क...

Bachpan Ki Wah Nadi | Nasira Sharma

बचपन की वह नदी | नासिरा शर्मा  बचपन की वह नदीजो बहती थी मेरी नसों मेंजाने कितनी बारउतारा है मैंने उसे अक्षरों मेंपढ़ने वाले करते हैं शिकायतयह नदी कहाँ है जिसका ज़िक्र ...

Daily Passenger | Arun Kamal

डेली पैसेंजर | अरुण कमलमैंने उसे कुछ भी तो नहीं दियाइसे प्यार भी तो नहीं कहेंगेएक धुँधले-से स्टेशन पर वह हमारे डब्बे मेंचढ़ीऔर भीड़ में खड़ी रही कुछ देर सीकड़ पकड़ेपाँ...

Dehri | Geetu Garg

देहरी | गीतू गर्ग बुढ़ा जाती है मायके की ढ्योडियॉंअशक्त होती मॉं के साथ..अकेलेपन कोसीने की कसमसाहट में भरने की आतुरता निढाल आशंकाओं में झूलती उतराती..थाली में परसी एक ...

Pura Din | Gulzar

पूरा दिन | गुलज़ारमुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता हैमगर हर रोज़ कोई छीन लेता है,झपट लेता है, अंटी सेकभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने कीआहट भी नहीं होती,खरे ...

Onth | Ashok Vajpeyi

ओंठ | अशोक वाजपेयीतराशने में लगा होगा एक जन्मांतरपर अभी-अभी उगी पत्तियों की तरह ताज़े हैं।उन पर आयु की झीनी ओस हमेशा नम हैउसी रास्ते आती है हँसीमुस्कुराहटवहीं खिलते हैं...

Saundarya Ka Aashcharyalok | Savita Singh

सौंदर्य का आश्चर्यलोक | सविता सिंहबचपन में घंटों माँ को निहारा करती थीमुझे वह बेहद सुंदर लगती थीउसके हाथ कोमल गुलाबी फूलों की तरह थेपाँव ख़रगोश के पाँव जैसेउसकी आँखें ...

Sankat | Madan Kashyap

संकट | मदन कश्यप अक्सर ताला उसकी ज़ुबान पर लगा होता है जो बहुत ज़्यादा सोचता हैजो बहुत बोलता है उसके दिमाग पर ताला लगा होता हैसंकट तब बढ़ जाता हैजब चुप्पा आदमी इतना चुप ...

Hum Nadi Ke Saath Saath | Agyeya

हम नदी के साथ-साथ | अज्ञेयहम नदी के साथ-साथसागर की ओर गएपर नदी सागर में मिलीहम छोर रहे:नारियल के खड़े तने हमेंलहरों से अलगाते रहेबालू के ढूहों से जहाँ-तहाँ चिपटेरंग-बि...

Sui | Ramdarash Mishra

सूई | रामदरश मिश्रा अभी-अभी लौटी हूँ अपनी जगह परपरिवार के एक पाँव में चुभा हुआ काँटा निकालकरफिर खोंस दी गयी हूँधागे की रील मेंजहाँ पड़ी रहूंगी चुपचापपरिवार की हलचलों म...

Daraar mein Ugaa Peepal | Arvind Awasthi

दरार में उगा पीपल | अरविन्द अवस्थीज़मीन से बीस फीट ऊपरकिले की दीवार कीदरार में उगा पीपलमहत्वकांक्षा की डोर पकड़लगा है कोशिश मेंऊपर और ऊपर जाने कीजीने के लिएखींच ले रहा...

Kya Karun Kora Hi Chhor Jaun Kaagaz? | Anup Sethi

क्या करूँ कोरा ही छोड़ जाऊँ काग़ज़? | अनूप सेठीक से लिखता हूँ कव्वा कर्कशक से कपोत छूट जाता है पंख फड़फड़ाता हुआलिखना चाहता हूँ कलाकल बनकर उत्पादन करने लगती हैलिखता हूँ क...

Itna Mat Door Raho Gandh Kahin Kho Jaye | Girija Kumar Mathur

इतना मत दूर रहो गन्ध कहीं खो जाए | गिरिजाकुमार माथुरइतना मत दूर रहोगन्ध कहीं खो जाएआने दो आँचरोशनी न मन्द हो जाएदेखा तुमको मैंने कितने जन्मों के बादचम्पे की बदली सी धू...

Mit Mit Kar Main Seekh Raha Hun | Kedarnath Agarwal

मिट मिट कर मैं सीख रहा हूँ | केदारनाथ अग्रवालदूर कटा कविमैं जनता का,कच-कच करताकचर रहा हूँ अपनी माटी;मिट-मिट करमैं सीख रहा हूँ प्रतिपल जीने की परिपाटीकानूनी करतब से मार...

Isliye To Tum Pahad Ho | Rajesh Joshi

इसीलिए तो तुम पहाड़ हो | राजेश जोशी शिवालिक की पहाड़ियों पर चढ़ते हुए हाँफ जाता हूँ साँस के सन्तुलित होने तक पौड़ियों पर कई-कई बार रुकता हूँआने को तो मैं भी आया हूँ यह...

Humare Sheher Ki Streeyan | Anup Sethi

हमारे शहर की स्त्रियाँ | अनूप सेठीएक साथ कई स्त्रियाँ बस में चढ़ती हैंएक हाथ से संतुलन बनाएएक हाथ में रुपए का सिक्का थामेबिना धक्का खाए काम पर पहुँचना है उन्हेंदिन भर ज...

Andhere Ka Swapn | Priyanka

अंधेरे का स्वप्न  | प्रियंका मैं उस ओर जाना चाहती हूँजिधर हो नीम अँधेरा !अंधेरे में बैठा जा सकता हैथोड़ी देर सुकून सेऔर बातें की जा सकती हैंख़ुद सेथोड़ी देर ही सहीजिया...

Itna To Zindagi Main Kisi Ki Khalal Pade | Kaifi Azmi

इतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़े |  कैफ़ी आज़मीइतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़ेहँसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़ेजिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-...

Itihaas | Naresh Saxena

इतिहास | नरेश सक्सेना बरत पर फेंक दी गई चीज़ें, ख़ाली डिब्बे, शीशियाँ और रैपर ज़्यादातर तो बीन ले जाते हैं बच्चे,बाकी बची, शायद कुछ देर रहती हो शोकमग्नलेकिन देखते-देखते ...

Jo Yuva Tha | Shrikant Verma

जो युवा था | श्रीकांत वर्मालौटकर सब आएँगेसिर्फ़ वह नहींजो युवा था—युवावस्था लौटकर नहीं आती।अगर आया भी तोवह नहीं होगा।पके बाल, झुर्रियाँ,ज़रा,थकानवह बूढ़ा हो चुका होगा।...

Yadi Prem Hai Mujhse | Ajay Jugran

यदि प्रेम है मुझसे  | अजय जुगरान यदि प्रेम है मुझसे तो मेरी घृणा का विरोध करना फिर वो चाहे किसी भी व्यक्ति किसी नस्ल से हो,यदि प्रेम है मुझसे तो मेरे क्रोध का विरोध कर...

Vah Ma Hai | Damodar Khadse

वह माँ है | दामोदर खड़से दुःख जोड़ता है माँ के अहसासों में... माँ की अँगुलियों में होती है दवाइयों की फैक्ट्री! माँ की आँखों में होती हैं अग्निशामक दल की दमकलें माँ के ...

Ek Pal Hi Sahi | Nandkishore Acharya

एक पल ही सही  | नंदकिशोर आचार्य कभी निकाल बाहर करूँगा मैं समय कोहमारे बीच सेअरे, कभी तो जीने दो थोड़ाहम को भी अपने मेंठेलता ही रहता हैजब देखो जाने कहाँफिर चाहे शिकायत ...

Dincharya | Shrikant Varma

दिनचर्या | श्रीकांत वर्माएक अदृश्य टाइपराइटर पर साफ़, सुथरेकाग़ज़-साचढ़ता हुआ दिन,तेज़ी से छपते मकान,घर, मनुष्यऔर पूँछ हिला गली से बाहर आताकोई कुत्ता।एक टाइपराइटर पृथ्...

Kaurav Kaun, Kaun Pandav | Atal Bihari Vajpayee

कौरव कौन, कौन पांडव | अटल बिहारी वाजपेयीकौरव कौनकौन पांडव,टेढ़ा सवाल है।दोनों ओर शकुनिका फैलाकूटजाल है।धर्मराज ने छोड़ी नहींजुए की लत है।हर पंचायत मेंपांचालीअपमानित है...

Bachpan | Vinay Kumar Singh

बचपन | विनय कुमार सिंहचाय के कप के दागदिखाई दे रहे थेऔर फिर गुस्से सेदी गई गाली के अक्सउस छोटे बच्चे के चेहरे परदेर तक दिखाई देते रहेजो अपने कमज़ोर हाथों सेनिर्विकार भ...

Nadi | Kedarnath Singh

नदी | केदारनाथ सिंह अगर धीरे चलोवह तुम्हें छू लेगीदौड़ो तो छूट जाएगी नदीअगर ले लो साथतो बीहड़ रास्तों में भीवह चलती चली जाएगीतुम्हारी उँगली पकड़करअगर छोड़ दोतो वहीं अँ...

Mere Bheetar Ki Koel | Sarveshwar Dayal Saxena

मेरे भीतर की कोयल | सर्वेश्वरदयाल सक्सेनामेरे भीतर कहींएक कोयल पागल हो गई है।सुबह, दुपहर, शाम, रातबस कूदती ही रहती हैहर क्षणकिन्हीं पत्तियों में छिपीथकती नहीं।मैं क्या...

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