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Khud Se | Renu Kashyap

ख़ुद से | रेणु कश्यपगिरो कितनी भी बार मगर उठो तो यूँ उठो कि पंख पहले से लंबे हों और उड़ान न सिर्फ़ ऊँची पर गहरी भी हारना और डरना रहे बस हिस्सा भर एक लंबी उम्र का और उम्म...

Mera Mobile Number Delete Kar Dein Please | Uday Prakash

 मेरा मोबाइल नम्बर डिलीट कर दें प्लीज़ - उदय प्रकाशसबसे पहले सिर्फ़ आवाज़ थीकोई नाद थाऔर उसके सिवा कुछ भी नहींउसी आवाज़ से पैदा हुआ था ब्रह्माण्डआवाज़ जब गायब होती हैत...

Prem Me Prem Ki Ummeed | Mamta Barhath

प्रेम में प्रेम की उम्मीद | ममता बारहठजीवन से बचाकर ले जाऊँगी देखना प्रेम के कुछ क़तरे मुट्ठियों में भींचकर प्रेम की ये कुछ बूँदें जो बची रह जाएँगी छाया से मृत्यु की ब...

Duniya Me Acche Logon Ki Kami Nahi Hai | Vinod Kumar Shukla

दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है | विनोद कुमार शुक्ल दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है कहकर मैं अपने घर से चला। यहाँ पहुँचते तक जगह-जगह मैंने यही कहा और यही क...

Stree Ko Samajhne Ke Liye | Vishwanath Prasad Tiwari

स्त्री को समझने के लिए - विश्वनाथ प्रसाद तिवारी कैसे उतरता है स्तनों में दूध कैसे झनकते हैं ममता के तारकैसे मरती हैं कामनाएँकैसे झरती हैं दंतकथाएंकैसे टूटता है गुड़ियो...

Keerti ka Vihan Hun | Kanhaiya Lal Pandya 'Suman'

कीर्ति का विहान हूँ | स्व. कन्हैया लाल पण्ड्या ‘सुमन’मैं स्वतंत्र राष्ट्र की कीर्ति का विहान हूँ।काल ने कहा रुकोशक्ति ने कहा झुकोपाँव ने कहा थकोकिन्तु मैं न रुक सका, न...

Tay To Yehi Hua Tha | Sharad Bilore

तय तो यही हुआ था - शरद बिलाैरेसबसे पहले बायाँ हाथ कटा फिर दोनों पैर लहूलुहान होते हुए टुकड़ों में कटते चले गए ख़ून दर्द के धक्के खा-खा कर नशों से बाहर निकल आया था तय त...

Pagdandiyan | Madan Kashyap

पगडण्डियाँ - मदन कश्यप हम नहीं जानते उन उन जगहों कोवहाँ-वहाँ हमें ले जाती हैं पगडण्डियाँजहाँ-जहाँ जाती हैं पगडण्डियाँकभी खुले मैदान मेंतो कभी सघन झाड़ियों में कभी घाटि...

Ghar | Agyeya

घर | अज्ञेयमेरा घर दो दरवाज़ों को जोड़ता एक घेरा है मेरा घर दो दरवाज़ों के बीच है उसमें किधर से भी झाँको तुम दरवाज़े से बाहर देख रहे होंगे तुम्हें पार का दृश्य दिख जाए...

Abhuwata Samaj | Rupam Mishra

अभुवाता समाज | रूपम मिश्र वे शीशे-बासे से नहीं हरी कनई मिट्टी से बनी थींजिसमें इतनी नमी थी कि एक सत्ता की चाक पर मनचाहा ढाल दिया जातानाचती हुई एक स्त्री को अचानक कुछ य...

Hum Auratein hain Mukhautey Nahi | Anupam Singh

हम औरतें हैं मुखौटे नहीं - अनुपम सिंहवह अपनी भट्ठियों में मुखौटे तैयार करता है उन पर लेबुल लगाकर सूखने के लिए लग्गियों के सहारे टाँग देता है सूखने के बाद उनको अनेक रास...

Krantipurush | Chitra Pawar

क्रांतिपुरुष | चित्रा पँवार कल रात सपने के बगीचे में हवाखोरी करतेभगत सिंह से मुलाकात हो गईमैंने पूछा शहीव-ए-आज़म!तुम क्रांतिकारी ना होते तो क्‍या होते?वह ठहाका मारकर ह...

Sheetleheri Mein Ek Boodhe Aadmi Ki Prathna | Kedarnath Singh

शीतलहरी में एक बूढ़े आदमी की प्रार्थना | केदारनाथ सिंहईश्वरइस भयानक ठंड में जहाँ पेड़ के पत्ते तक ठिठुर रहे हैं मुझे कहाँ मिलेगा वह कोयला जिस पर इन्सानियत का खून गरमाया...

Tum Apne Rang Me Rang Lo To Holi Hai | Harivansh Rai Bachchan

तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है | हरिवंशराय बच्चनतुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।देखी मैंने बहुत दिनों तकदुनिया की रंगीनी,किंतु रही कोरी की कोरीमेरी चादर झीनी,तन...

Dharti ka Shaap | Anupam Singh

धरती का शाप | अनुपम सिंहमौत की ओर अग्रसर है धरती मुड़-मुड़कर देख रही है पीछे की ओर उसकी आँखें खोज रही हैं आदिम पुरखिनों के पद-चिह्न उन सखियों को खोज रही हैं जिनके साथ ...

Peet Kamal | Nandkishore Acharya

पीत कमल | नन्दकिशोर आचार्य जल ही जल की नीली-दर-नीली गहराई के नीचे जमे हुए काले दलदल ही दलदल में अपनी ही पूँछ पर सर टिका कर सो रहा था वह : उचटा अचानक भूला हुआ कुछ कहीं ...

Unka Jeevan | Anupam Singh

उनका जीवन | अनुपम सिंह ख़ाली कनस्तर-सा उदास दिन बीतता ही नहीं रात रज़ाइयों में चीख़ती हैं कपास की आत्माएँ जैसे रुइयाँ नहीं आत्माएँ ही धुनी गई हों गहरी होती बिवाइयों में झ...

Lekar Seedha Naara | Shamsher Bahadur Singh

लेकर सीधा नारा | शमशेर बहादुर सिंहलेकर सीधा नारा कौन पुकारा अंतिम आशाओं की संध्याओं से? पलकें डूबी ही-सी थीं— पर अभी नहीं; कोई सुनता-सा था मुझे कहीं; फिर किसने यह, सात...

Azadi Abhi Adhoori Hai | Sheoraj Singh Bechain

आज़ादी अभी अधूरी है-सच है यह बात समझ प्यारे।कुछ सुविधाओं के टुकड़े खा-मत नौ-नौ बाँस उछल प्यारे।गोरे गैरों का जुल्म था कलअब सितम हमारे अपनों काये कुछ भी कहें, पर देशबना...

Maine Dekha | Jyoti Pandey

मैंने देखा | ज्योति पांडेय मैंने देखा, वाष्प को मेघ बनते और मेघ को जल। पैरों में पृथ्वी पहन उल्काओं की सँकरी गलियों में जाते उसे मैंने देखा। वह नाप रहा था जीवन की परिध...

Kasautiyan | Vishwanath Prasad Tiwari

कसौटियाँ | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी'जो एक का सत्य है वही सबका सत्य है'—यह बात बहुत सीधी थी लेकिन वे चीजों पर उलटा विचार करते थेउन्होंने सबके लिए एक आचार—संहिता तैयार की ...

Ziladheesh | Alok Dhanwa

ज़िलाधीश | आलोक धन्वा तुम एक पिछड़े हुए वक्ता हो। तुम एक ऐसे विरोध की भाषा में बोलते हो जैसे राजाओं का विरोध कर रहे हो! एक ऐसे समय की भाषा जब संसद का जन्म नहीं हुआ था!...

Tirohit Sitar | Damodar Khadse

तिरोहित सितार | दामोदर खड़सेखूँखार समय केघनघोर जंगल में बहरा एकांत जब देख नहीं पाता अपना आसपास...तब अगली पीढ़ी की देहरी पर कोई तिरोहित सितार अपने विसर्जन की कातर याचना ...

Seekh | Balraj Sahni

सीख | बलराज साहनी वैज्ञानिकों का कथन है किडरे हुए मनुष्य के शरीर सेएक प्रकार की बास निकलती हैजिसे कुत्ता झट सूँघ लेता हैऔर काटने दौड़ता है।और अगर आदमी न डरेतो कुत्ता मु...

Kuch Bann Jaate Hain | Uday Prakash

कुछ बन जाते हैं | उदय प्रकाशकुछ बन जाते हैंतुम मिसरी की डली बन जाओ मैं दूध बन जाता हूँ तुम मुझमें घुल जाओ।तुम ढाई साल की बच्ची बन जाओमैं मिसरी घुला दूध हूँ मीठामुझे एक...

Surya Dhalta Hi Nahi | Ramdarash Mishra

सूर्य ढलता ही नहीं | रामदरश मिश्र | आरती जैनचाहता हूँ, कुछ लिखूँ, पर कुछ निकलता ही नहीं हैदोस्त, भीतर आपके कोई विकलता ही नहीं है!आप बैठे हैं अंधेरे में लदे टूटे पलों स...

Tedhi Kamar KI Auratein | Aishwarya Vijay Amrit Raj

टेढ़ी कमर की औरतें | ऐश्वर्य विजय अमृत राजछः-सात साल की लड़कियाँछोटे भाइयों/बड़े भाई के बच्चे के साथ/सोलह साल कीसालभर पुरानी कन्याएँअपने बच्चे/जेठानी के बच्चे के साथचालीस...

Qile Mein Bacche | Naresh Saxena

क़िले में बच्चे | नरेश सक्सेना क़िले के फाटक खुले पड़े हैं और पहरेदार गायबड्योढ़ी में चमगादड़ें दीवाने ख़ास में जाले और हरम बेपर्दा हैं सुल्तान दौड़ो!आज किले में भर गए ह...

Chunav Ki Chot | Kaka Hathrasi

चुनाव की चोट | काका हाथरसीहार गए वे, लग गई इलेक्शन में चोट। अपना अपना भाग्य है, वोटर का क्या खोट? वोटर का क्या खोट, ज़मानत ज़ब्त हो गई। उस दिन से ही लालाजी को ख़ब्त हो ...

Jo Kuch Dekha-Suna, Samjha, Likh Diya | Nirmala Putul

जो कुछ देखा-सुना, समझा, लिख दिया | निर्मला पुतुलबिना किसी लाग-लपेट के तुम्हें अच्छा लगे, ना लगे, तुम जानो चिकनी-चुपड़ी भाषा की उम्मीद न करो मुझसे जीवन के ऊबड़-खाबड़ रा...

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