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Sirf Mohabbat Hi Mazhab Hai Har Sacche Insaan Ka | Lakshmi Shankar Vajpeyi

सिर्फ मोहब्बत ही मज़हब है हर सच्चे इंसान का | लक्ष्मीशंकर वाजपेयीमाँ की ममता, फूल की खुशबू, बच्चे की मुस्कान कासिर्फ़ मोहब्बत ही मज़हब है हर सच्चे इंसान काकिसी पेड़ के...

Umr | Hemant Deolekar

उम्र -  हेमंत देवलेकर तुम कितने साल की होडिंबू ?"तीन साल की”"और तुम्हारी मम्मी ?""तीन साल की""और पापा?""तीन साल"अचानक मुझे यह दुनियाकच्चे टमाटर सी लगीमहज़ तीन साल पुरानी

Kavi Log | Rituraj

कवि लोग | ऋतुराजकवि लोग बहुत लंबी उमर जीते हैं मारे जा रहे होते हैं फिर भी जीते हैं कृतघ्न समय में मूर्खों और लंपटों के साथ निभाते अपनी दोस्ती  उनके हाथों में ठूँसते अ...

Parinde Par Kavi Ko Pehchante Hain | Rajesh Joshi

परिन्दे पर कवि को पहचानते हैं - राजेश जोशी सालिम अली की क़िताबें पढ़ते हुएमैंने परिन्दों को पहचानना सीखा।और उनका पीछा करने लगापाँव में जंज़ीर न होती तो अब तक तो .न जान...

Ek Tinka | Ayodhya Singh Upadhyay 'Hari Oudh'

एक तिनका | अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ।एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा।आ अचानक दूर से उड़ता हुआ।एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।मैं झिझक उठा, ह...

Bahut dinon ke baad | Nagarjun

बहुत दिनों के बाद | नागार्जुनबहुत दिनों के बाद अबकी मैंने जी भर देखी पकी-सुनहली फ़सलों की मुस्कान - बहुत दिनों के बाद बहुत दिनों के बाद अबकी मैं जी भर सुन पाया धान कूट...

Uth Jaag Musafir | Vanshidhar Shukla

उठ जाग मुसाफ़िर | वंशीधर शुक्लउठ जाग मुसाफ़िर! भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है। जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है। उठ जाग मुसाफ़िर! भोर भई, अब रैन कहाँ जो सो...

Maut Ik Geet Raat Gaati Thi | Firaq Gorakhpuri

मौत इक गीत रात गाती थीज़िन्दगी झूम झूम जाती थीज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल मेंतेरी तस्वीर उतरती जाती थीवो तिरा ग़म हो या ग़म-ए-आफ़ाक़शम्मअ  सी दिल में झिलमिलाती थीज़िन्द...

Sir Chupane Ki Jagah | Rajesh Joshi

सिर छिपाने की जगह  | राजेश जोशी न उन्होंने कुंडी खड़खड़ाई न दरवाज़े पर लगी घंटी बजाईअचानक घर के अन्दर तक चले आए वे लोगउनके सिर और कपड़े कुछ भीगे हुए थेमैं उनसे कुछ पूछ...

Mere Bete | Kavita Kadambari

मेरे बेटे | कविता कादम्बरीमेरे बेटे                                                      कभी इतने ऊँचे मत होना कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो उसे लगानी पड़े सीढ़िय...

Baad Ke Dinon Mein Premikayein | Rupam Mishra

बाद के दिनों में  प्रेमिकाएँ | रूपम मिश्रा बाद के दिनों में प्रेमिकाएँ पत्नियाँ बन गईंवे सहेजने लगीं प्रेमी को जैसे मुफलिसी के दिनों में अम्मा घी की गगरी सहेजती थींवे ...

Ishwar Aur Pyaz | Kedarnath Singh

ईश्वर और प्याज़ | केदारनाथ सिंह क्या ईश्वर प्याज़ खाता है?एक दिन माँ ने मुझसे पूछाजब मैं लंच से पहलेप्याज़ के छिलके उतार रहा थाक्यों नहीं माँ मैंने कहाजब दुनिया उसने बना...

Anant Janmon Ki Katha | Vishwanath Prasad Tiwari

अनंत जन्मों की कथा | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी मुझे याद हैअपने अनंत जन्मों की  कथापिता ने उपेक्षा कीसती हुई मैंचक्र से कटे मेरे अंग-प्रत्यंगजन्मदात्री माँ ने अरण्य में छो...

Khul Kar | Nandkishore Acharya

खुल कर | नंदकिशोर आचार्य खुल कर हो रही बारिशखुल कर नहाना चाहती लड़कीअपनी खुली छत पर।किन्तु लोगों की खुली आँखेंउसको बन्द रखती हैंखुल कर हो रहीबरसात में।

Janna Zaroori Hai | Indu Jain

जानना ज़रूरी है | इन्दु जैनजब वक्त कम रह जाएतो जानना ज़रूरी है किक्या ज़रूरी हैसिर्फ़ चाहिए के बदले चाहनापहचानना कि कहां हैं हाथ में हाथ दिए दोनोंमुखामुख मुस्करा रहे ह...

Hum Aur Log | Kedarnath Agarwal

हम ओर लोग  | केदारनाथ अग्रवाल हमबड़े नहींफिर भी बड़े हैंइसलिए किलोग जहाँ गिर पड़े हैंहम वहाँ तने खड़े हैंद्वन्द कीलड़ाई भीसाहस से लड़े हैं;न दुख से डरे,न सुख से मरे है...

Baarish Ki Bhasha | Shahanshah Alam

बारिश की भाषा | शहंशाह आलम उसकी देह कितनी बातूनी लग रही हैजो बारिश से बचने की ख़ातिर खड़ी हैजामुन पेड़ के नीचे जामुनी रंग के कपड़े में‘जामुन ख़रीदकर घर लाए कितने दिन ह...

Ve Kaise Din They | Kirti Choudhary

वे कैसे दिन थे | कीर्ति चौधरीवे कैसे दिन थे जब चीज़ें भागती थीं और हम स्थिर थे जैसे ट्रेन के एक डिब्बे में बंद झाँकते हुए ओझल होते थे दृश्य पल के पल में— ...कौन थी यह त...

Din Bhar | Ramdarash Mishra

दिन भर | रामदरश मिश्राआज दिन भर कुछ नहीं कियासुबह की झील मेंएक कंकड़ी मारकर बैठ गया तट परऔर उसमें उठने वाली लहरों को देखता रहाशाम को लोग घर लौटे तोन जाने क्या-क्या साम...

Aurat Ki Ghulami | Sheoraj Singh 'Bechain'

औरत की गुलामी | डॉ श्योराज सिंह ‘बेचैन’ किसी आँख में लहू है-किसी आँख में पानी है।औरत की गुलामी भी-एक लम्बी कहानी है।पैदा हुई थी जिस दिन-घर शोक में डूबा था।बेटे की तरह ...

Chal Insha Apne Gaon Mein | Ibn e Insha

चल इंशा अपने गाँव में | इब्ने इंशायहाँ उजले उजले रूप बहुतपर असली कम, बहरूप बहुतइस पेड़ के नीचे क्या रुकनाजहाँ साये कम,धूप बहुतचल इंशा अपने गाँव मेंबेठेंगे सुख की छाओं ...

Saat Panktiyan | Manglesh Dabral

सात पंक्तियाँ - मंगलेश डबराल मुश्किल से हाथ लगी एक सरल पंक्तिएक दूसरी बेडौल-सी पंक्ति में समा गईउसने तीसरी जर्जर क़िस्म की पंक्ति को धक्का दियाइस तरह जटिल-सी लड़खड़ाती...

Bahurupiya | Madan Kashyap

बहुरूपिया | मदन कश्यप जब वह पास आयातो पाँव में प्लास्टिक की चप्पल देखकर एकदम से हँसी फूट पड़ीफिर लगाभला कैसे संभव हैमहानगर की क्रूर सड़कों पर नंगे पाँव चलना चाहे वह बह...

Ik Roz Doodh Ne Ki Pani Se Paak Ulfat | Unknown

इक रोज़ दूध ने की पानी से पाक उल्फ़त | अज्ञात इक रोज़ दूध ने की, पानी से पाक उल्फ़तइक ज़ात हो गए वो, मिल-जुल के भाई भाईइनमें बढ़ी वो उल्फ़त, एक रंग हो गए वोएक दूसरे ने पाय...

Arrey Ab Aisi Kavita Likho | Raghuvir Sahay

अरे अब ऐसी कविता लिखो | रघुवीर सहायअरे अब ऐसी कविता लिखोकि जिसमें छंद घूमकर आयघुमड़ता जाय देह में दर्दकहीं पर एक बार ठहरायकि जिसमें एक प्रतिज्ञा करूंवही दो बार शब्द बन...

Prem Karna Ya Phasna | Rupam Mishra

प्रेम करना या फंसना - रूपम मिश्रा हम दोनों नए-नए प्रेम में थेउसके हाथ में महँगा-सा फोन था और बाँह में औसत-सी मैंफोन में कई खूबसूरत लड़कियों की तसवीरें दिखाते हुए उसनेम...

Rin Phoolon Sa | Sunita Jain

ऋण फूलों-सा | सुनीता जैनइस काया कोजिस माया नेजन्म दिया,वह माँग रही-किजैसे उत्सव के बाददीवारों परहाथों के थापे रह जातेजैसे पूजा के बादचौरे के आसपासपैरों के छापे रह जाते...

Saath Chalte Chalte Tum | Rashmi Pathak

साथ चलते चलते तुम | रश्मि  पाठक  तुम बहुत आगे  निकल गए  जाने कितना समय  लगेगा तुम तक  पहुँचने में  सोचती थी कैसे कटेंगे   ये पल छिन   बीत गया एक   बरस तुम्हारे बिन   ब...

Filhaal | Uday Prakash

फ़िलहाल | उदय प्रकाश एक गत्ते का आदमीबन गया था लौहपुरुषबलात्कारी हो चुका था सन्तव्यभिचारी विद्वानचापलूस क्रान्तिकारीमदारी को घोषित कर दिया गया थायुग-प्रवर्तकअख़बार और ...

Kavita Ke Liye | Snehmayi Chaudhary

कविता के लिए | स्नेहमयी चौधरीकविता लिखने के लिए जो परेशान करते थे उन सबको मैंने धीरे-धीरे अपने से काट दिया। जैसे : ज़रा सी बात पर बड़ी देर तक घुमड़ते रहना, अपने किए को...

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